Temple

श्री संकट मोचन धाम दरबार भरेवा, उमरिया (मध्यप्रदेश) में स्थित है।

"दरबारेश्वर श्री हनुमान जी महाराज" इतिहास एवं यशगाथा

बाणसागर बांध जो सोन नदी पर बना है ,अनेक ऐतिहासिक धरोहरों के साथ ही लगभग 262 ग्रामों, दुर्लभ बगीचों और आवागमन के पुल-पुलियों को निगल गया | उन्ही धरोहरों में महर्षि मार्कंडेय आश्रम और इसी से लगभग 1 किलोमीटर दूर, हनुमान मंदिर पर अस्तित्व का संकट उपस्थित हो गया | तभी दरबार ग्राम के वासियों ने मूर्ति वर्तमान दरबार ( नवीन) में स्थापित कर दिया | मूर्ति आने के बाद पुराना स्थान मंदिर अपने गुंबदों के साथ जलमग्न हो गया | अब यह स्थान उमरिया जिले की मानपुर तहसील के नवीन दरबार (भरेवा) में स्थित है |

प्राकट्य एवं मढ़ियानिर्माण

दरबार ग्राम एक ऐतिहासिक ग्राम है | आजादी के पूर्व की 522 देसी रियासतों में से एक रीवा रियासत का, जिसकी प्राचीन राजधानी बांधवगढ़ , को जोड़ने वाला यह ग्राम दरबार रीवा राज्य के इतिहास और मानचित्रो में इसका नाम "दुअरा" अंकित है | सोन नदी, महानदी के संगम व केहेजुआ पर्वत श्रेणी के अंचल में स्थित होने के कारण यह अत्यंत रमणीय है | और महाराज अपने शिकार पर जाते समय यहां अपना दरबार लगाते और आसपास के लोगों की भेंट घी दूध के साथ शिकार फसाने के लिए पड़वा बकरी नि:शुल्क प्रदान करते | कई दिनों तक अन्नदाता सरकार के दरबार लगते , शिकार के अफसर ,सैनिकों की रेल फेल यहां रहती | लगता है इन्हीं कारणों से दुअरा के स्थान में सरकारी रिकॉर्ड में दरबार अंकित किया गया ,जो रीवा राज्य के इतिहास में है ||

प्राकृतिक कथा

85 वर्ष पार कर गए ,इन पंक्तियों के लेखक ने सरयू पार करने वाले ग्राम वासियों से 50 वर्ष पूर्व "दरबारेश्वर जन्म कथा पर" जानकारी ली थी ,उनके अनुसार तब लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की स्थिति सोन नदी बिल्कुल तट में थी ,कुआँ बावड़ी कुछ नहीं थे, पीने का पानी भी नहीं था, पानी भी नदी से लिया जाता था | एक वर्ष गांव बाढ़ में डूब गया ,घर नदी में समा गए, दोबारा बस्ती बनी, निवासियों में से कुछ घर, संपन्न गौतम ब्राह्मण के, कुछ नाव चलाने वाले केवटों के, और अधिकांश घर गोंड आदिवासियों के थे ,जो खेती में श्रम से बहुत संपन्न बन गए | दरबार की धरती डूब कर भी बार-बार सोना उगलती थी , बाढ़ के कारण फटी मिट्टी को एक गौतम परिवार ने इसीलिए हटवाया क्योंकि एक दबा हुआ पत्थर बार-बार उनके पैरों को चुभता था ,लोगों के सहयोग से मिट्टी हटी तो, विशालकाय मूर्ति निकली, जो नदी के तट पर एक बेल के वृक्ष से टिका दी गई, बाद में मिट्टी-पत्थर से एक मढिया बना दी गई ,यही कहानी वयोवृद्धो के द्वारा बताई गई||

हठी महाराज

बाल्मीकि व रामचरितमानस में हनुमान जी को अतुलित बलधामम् ,अधिक निष्ठा वाले देव के रूप में, वर्णित किया गया है | दरबार ने इस रूप को तब देखा, जब लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ,गांव के व्यवहर, स्वर्गीय राम राही राम ,लेखक के मातामह ने ,एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया |ठोस पत्थर, सुर्खी की जोड़ी ,कराई उच्च शिखर, दलान, सब कुछ प्राचीन स्थापत्य कला के अनुसार वह भी स्वामी जी की मढिया से लगा हुआ लगभग 5 फीट के अंतर में मन्दिर बनकर तैयार हुआ | मंदिर में प्रवेश हेतु श्रीमद् भागवत सप्ताह ,ब्राह्मण भोज, दान- दक्षिणा, उत्साह संपन्न हुए ,सैकड़ो नारियल बंध गए | वहां के बाद जब मूर्ति उठाने का प्रयास हुआ तब गौतम बाबा का पूरा धन का अहंकार, सैकड़ो का बाहुबल किसी काम नहीं आया ,मूर्ति उठना तो दूर हिली भी नहीं और आज भी डेढ़ शताब्दी बाद भी बिना देव स्थापना के वह भव्य मंदिर जल के भीतर से गौतम बाबा की असफल प्रयास की दुखद गाथा सुन रहा है ||

आगे:- मंदिर निर्माता जो उच्च कुलीन ब्राह्मण, लक्ष्मी के उपासक थे उनका दुखद अंत का उल्लेख समीचीन प्रतीत होता है | राम राही राम बाबा को एक पुत्र प्राप्ति के लिए तीन विवाह करना पड़ा पहले व दूसरी पत्नी के एक-एक पुत्रियां थी , संपत्ति का उत्तराधिकारी अब तक नहीं मिला था अब तीसरा विवाह किया एक सुंदर सुशील पुत्र पाकर पिता बहुत प्रसन्न थे || प्रकृति को उनकी प्रसन्नता स्वीकार न हुई उन दिनों हैजा जैसी बीमारी से गांव के गांव उजड़ जाया करते थे अंधविश्वास दवा दारू का अभाव ऐसी स्थिति पैदा कर देते थे कि परिवार में अंतिम संस्कार करने वाला भी नहीं बचता और इस महामारी में गौतम बाबा का वह होनहार भी भेंट चढ़ गया ,पुत्र शोक से पिता पूरी तरह टूट गए रोते-रोते उजड़ गए , बड़ी संपत्ति,पत्नी,परिवार सब कुछ छूट गया | रीवा राज्य का कानून ,पुत्री को उत्तराधिकारी नहीं मानता था ,अतः संपत्ति, सैकड़ो एकड़ भूमि ,राज्य शासन की हो गई ,औने - पौने दामों पर खरीद कर धनाढ्य बन गया और बाबा का दुखद अंत हुआ || जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए मंदिर का निर्माण कराया ,हवन, भंडारा किया ,उसका ऐसा दुखद अंत, विचारणीय है ||

गांव के बड़े बुजुर्गों ने इन पंक्तियों को लेखक से बताया कि बाबा ने धन अर्जन के लिए कुकर्म, बेमानी जैसे साधनों को अपनाया था अतः दरबारेश्वर महावीर हनुमान जी ने उनके धन से बने मंदिर को अपनाया नहीं और वह चिरकाल तक अभिशप्त रहने वाला मंदिर आज भी यह संदेश दे रहा है कि, उनके परम आराध्य भगवान श्री राम, स्वर्णलंका स्वीकार नहीं करते और किष्किंधा सुग्रीव को दे देते हैं || बाली-रावण को ,भगवान सद्गति तो देते हैं ,पर उनकी संपत्ति नहीं स्वीकारते || शायद बाबा राम राही राम के साथ भी यही हुआ दरबारेश्वर हनुमान जी ने उनका मोक्ष तो दिया पर मंदिर स्वीकार नहीं किया|

स्थानांतरण-1998

बाणसागर बांध बन कर पूरा हो गया ,वर्ष 1998 के जून का अंतिम सप्ताह ! सरकार के खजाने से भूमि भवन का मुआवजा दिया जा चुका था , चेक वितरण के समय बैंक कर्मचारी ,नगदी लेकर गांव में डेरा डाले हुए थे, नगदी, अधिकारियों द्वारा किसानों को भेंट थी| शेष राशि को बैंक वाले अपने कार्यालय ले गए | इसी बीच गांव में एक बुलडोजर घरों को गिराने लग गया ,भगदड़ मच गई अधिकारियों ने वचन दिया कि मंदिर ,देवालय नहीं गिराए जाएँगे अतः कुछ लोगों ने वहीं देवालय की शरण ली संकट मोचन मंदिर ,सोन नदी से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित होने के कारण , जल मग्न होने की कगार पर था | अतः ग्राम के प्रतिष्ठित जनों ने स्वीकृत एवं सहयोग से मूर्ति को नवीन दरबार में प्रतिस्थापित करने का निर्णय हुआ | मंदिर में अखंड मानस और भंडारे के लिए सामग्री के साथ मेरे परिवारजन भी मंदिर पहुंच गए | नदी के उस पार के लोग नाव से पहुंच गए ,मानस व भंडारा - प्रसाद के लिए सैकड़ो आने लगे | शाम तक प्रसाद भंडारे का काम चलता रहा, चमत्कार यह है कि थोड़ी खाद्य सामग्री से कई सौ लोगो ने भोजन किया , पर भोजन सामग्री बढ़ती ही गई ,समय अभाव से बची हुई सामग्री भक्तों के परिवार में वितरण हेतु दे दी गई| यह दरबारेश्वर महाराज की अन्नपूर्णता का चमत्कार था |

मूर्ति ट्रैक्टर ट्राली से ले जाने के लिए तैयार थी ,आधी ट्राली रेत के ऊपर लाल वस्त्र ,फूल -अगरबत्ती सजी थी विशाल मूर्ति का एक पांव पाताल तक है ,दूसरी बात लोग अपने पूर्वजों से यह सुन चुके थे की मूर्ति से छेड़छाड़ करने के फलस्वरूप बाबा राम राही राम का वंश जैसे समाप्त हो गया पर महाराज डिगे नहीं , उनके द्वारा निर्मित मंदिर 100 डेढ़ सौ वर्षो तक चमगादड़ों व कबूतरों का घर बनने के बाद सोन नदी में अथाह जल में समा गया अतः कोई मूर्ति की खुदाई को तैयार न था ,छोटा भाई लखन पुत्र रामसजीवन, खिलावन,राजेश भतीजे ब्रजकिशोर , राकेश नाती नीलेश सभी समिति के लोग मेरे निर्देश की प्रतीक्षा कर रहे थे गांव के बाहुबली केवट ने कह दिया था की मूर्ति की खुदाई वह नहीं करेगा | मैंने हनुमान जी के चरणों के नीचे जाकर प्रार्थना की, महाराज मैं आपको नदी में समाते हुए नहीं देख सकता ,यदि मूर्ति से छेड़छाड़ अपराध है तो दंड मुझे दिया जाए ना कि किसी अन्य को | बड़ी सब्बर की मदद से पाताली पांव के ऊपर की पटिया निकाला, पाताली पांव धरती से अलग होता दिखा,जय बजरंगबली के नारों से आकाश गूंज उठा, पड़ोसी गांव सरसी के ग्रामवासी फूट-फूट कर रोन लगे | क्या महाराज हमें छोड़ देंगे! सबको समझा कर,लगभग 6:00 बजे पुराने दरबार से नए दरबार के लिए जन समुदाय निकल पड़ा ,मार्ग में पड़ने वाले गांव ककरहटी पड़खुड़ी,जोबी के लोगों ने आरती पूजन किया और लगभग 8:00 बजे महाराज पहले से निर्मित अस्थाई मंडप में पधारे जहां प्रथम दिवसी संध्या आरती संपन्न हुई ||

मंदिर निर्माण वर्ष 2002

तब बाबा विश्वनाथ बनारस मंदिर की प्रतिकृति के अनुरूप मंदिर बन गया || कैमोर सीमेंट फैक्ट्री के पास ही स्थित एक गांव के पटेल मिस्त्री भारत के विख्यात मंदिर निर्माण विशेषज्ञ हैं उन्होंने निर्माण संपन्न किया ,श्री हनुमान जी कृपा उन पर सदा बनी रहे आलेख संक्षिप्त प्रयास से भी विस्तृत हो गया | स्वामी जी की कृपा और चमत्कार क्षेत्र में जन-जन में व्याप्त है इसीलिए प्रतिदिन संकट से व्यथित लोगों की भीड़ रहती है | और महाराज संकट मोचन, नाम के अनुरूप ,कृपा की वर्षा करते रहते हैं, नए मंदिर में बिराजने के बाद श्री हनुमान जी के कृपा के अनेक उदाहरण है ,उनमें से एक का संक्षेप में उल्लेख इस भौतिकवादी युग में उचित लगता है |

मंदिर से लगभग 50 किलोमीटर दूर ,मानपुर विकासखंड के पास एक ग्रामीण सज्जन दरबार वाले हनुमान जी की महिमा से बहुत प्रभावित थे और मकर संक्रांति पर मार्कंडेय मेला आते रहते थे एक बार मकर संक्रांति पर सोन नदी में अपने परिवार व इकलौते बेटे के साथ स्नान कर रहे थे ,भीड़ अधिक थी बेटा गहरे पानी में समा गया थोड़ी देर बाद बेटे की पुकार मच गई माता-पिता की संतान जल मे समा गयी,आदर्श पिता ने गुहार लगाई दरबार वाले दरबारेश्वर बचाओ,हमारा दीपक बुझ गया, बचाओ दरबारेश्वर, बचाओ ! माता चेतना शून्य थी ,पिता पत्थर में सिर पटक रहा था, तभी आश्चर्य ! हजारों ने देखा!! एक गौर वर्ण, पहलवान, लाल लंगोट में भीड़ चीरता हुआ नदी में कूदा, बच्चे की बाह पकड़कर उसे बाहर निकाल कर लिटा दिया ,पेट दबाकर पानी निकाला, बच्चा धीरे-धीरे उठ कर बैठ गया | पिता और हज़ारो लोग पहलवान की प्रशंसा करने लगे , ढूंढने वालों ने बहुत ढूंढा पर पवन को ना कोई ढूंढ सके ना पकड़ सके , इस घटना का उल्लेख पिता के द्वारा बताए गए भावनात्मक कथन पर आधारित है पिता अपने परिवार जनों के साथ नए दरबार में स्थित मंदिर आए थे भोज भंडारा हुआ था ||

ऐसा चमत्कार सभी दुखी लोगों को मिले यही स्वामी जी से प्रार्थना है उपसंहार में संकट मोचन धाम,नवीन दरबार की वर्तमान स्थिति पर थोड़ा प्रकाश प्रस्तुत है||

मार्कंडेय आश्रम क्षेत्र से लाई गई श्री मार्कंडेय ऋषि की मूर्ति ,पुराने हनुमान मंदिर की शिव-गणेश प्रतिमाएं , नर्मदेश्वर भगवान शिव-नंदी की मूर्तियां अलग-अलग, "श्री राम वन गमन पथ शोध संस्थान दिल्ली के सौजन्य से चरण कमल की स्थापना" मार्कंडेय ऋषि मंदिर में की गई ||

श्री अवध धाम से रामेश्वरम तक सभी तीर्थ की पावन रज से निर्मित पद-कमल, "भाव व शांति" का प्रदाता है||

श्री कौशेलेंद्र कल कीर्ति पताक दडं,

संकीर्तने निरत नित्य समाधि योगम्|

श्री रामदूत हनुमंतमगाध शक्तिं,

नित्यं न्तोशिम दरबारजनेश्वरं प्रभुम्||

लेखक -- रामप्रताप तिवारी

नित्य आरती

प्रातःकाल आरती

सुबह 7:30 बजे

सांध्यकालीन आरती

शाम 7:30 बजे

प्रातःकाल आरती

सुबह 7:30 बजे

सांध्यकालीन आरती

शाम 7:30 बजे

श्री संकट मोचन धाम

श्री हनुमान जी

मार्कंडेय आश्रम

श्री चरण पादुका

सोन नदी

कार्यक्रम

हनुमान प्राकट्योत्सव

भगवान हनुमान की जयंती के अवसर पर विशेष कार्यक्रम और प्रसाद वितरण।

राम नवमी

श्री राम नवमी के पावन अवसर पर भजन-कीर्तन और सत्संग कार्यक्रम।

साप्ताहिक सत्संग

प्रत्येक शनिवार को विशेष सुंदरकांड पाठ और प्रसाद वितरण।